हे लोगो जो ईमान लाये हो![1] हँसी न उड़ाये कोई जाति किसी अन्य जाति की। हो सकता है कि वह उनसे अच्छी हो और न नारी अन्य नारियों की। हो सकता है कि वो उनसे अच्छी हों तथा आक्षेप न लगाओ एक-दूसरे को और न किसी को बुरी उपाधि दो। बुरा नाम है अपशब्द ईमान के पश्चात् और जो क्षमा न माँगें, तो वही लोग अत्याचारी हैं।
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1. आयत 11 तथा 12 में उन सामाजिक बुराईयों से रोका गया है जो भाईचारे को खंडित करती हैं। जैसे किसी मुसलमान पर व्यंग करना, उस की हँसी उड़ाना, उसे बुरे नाम से पुकारना, उस के बारे में बुरा गुमान रखना, किसी के भेद की खोज करना आदि। इसी प्रकार ग़ीबत करना। जिस का अर्थ यह है कि किसी की अनुपस्थिति में उस की निन्दा की जाये। यह वह सामाजिक बुराईयाँ हैं जिन से क़ुर्आन तथा ह़दीसों में रोका गया है। नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अपने ह़ज्जतुल वदाअ के भाषण में फ़रमायाः मुसलमानो! तुम्हारे प्राण, तुम्हारे धन तथा तुम्हारी मर्यादा एक दूसरे के लिये उसी प्रकार आदरणीय हैं जिस प्रकार यह महीना तथा यह दिन आदरणीय है। (सह़ीह़ बुख़ारीः 1741, सह़ीह़ मुस्लिमः 1679) दूसरी ह़दीस में है कि एक मुसलमान दूसरे मुसलमान का भाई है। वह न उस पर अत्याचार करे और न किसी को अत्याचार करने दे। और न उसे नीच समझे। आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अपने सीने की ओर संकेत कर के कहाः अल्लाह का डर यहाँ होता है। (सह़ीह़ मुस्लिमः 2564)