तथा अल्लाह ने बनी इस्राईल से (भी) दृढ़ वचन लिया था और उनमें बारह प्रमुख नियुक्त कर दिये थे तथा अल्लाह ने कहा था कि मैं तुम्हारे साथ हूँ, यदि तुम नमाज की स्थापना करते रहे, ज़कात देते रहे, मेरे रसूलों पर ईमान (विश्वास) रखे रहे, उन्हें समर्थन देते रहे तथा अल्लाह को उत्तम ऋण देते रहे। (अगर ऐसा हुआ) तो मैं अवश्य तुम्हें तुम्हारे पाप क्षमा कर दूँगा और तुम्हें ऐसे स्वर्गों में प्रवेश दूँगा, जिनमें नहरें प्रवाहित होंगी और तुममें से जो इसके पश्चात् भी कुफ़्र (अविश्वास) करेगा, (दरअसल) वह सुपथ[1] से विचलित हो गया।
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1. अल्लाह को ऋण देने का अर्थ उस के लिये दान करना है। इस आयत में ईमान वालों को सावधान किया गया है कि तुम अह्ले किताबः यहूद और नसारा जैसे न हो जाना जो अल्लाह के वचन को भंग कर के उस की धिक्कार के अधिकारी बन गये। (इब्ने कसीर)