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                    surah.translation
            .
            
    
                                    من تأليف: 
                                            مولانا عزيز الحق العمري
                                                            .
                                                
            ﰡ
                                                                                                                
                                    ﮢﮣ
                                    ﰀ
                                                                        
                    शपथ है उन फ़रिश्तों की जो डूबकर (प्राण) निकालते हैं!
                                                                        
                                                                                                                
                                    ﮥﮦ
                                    ﰁ
                                                                        
                    और जो सरलता से (प्राण) निकालते हैं।
                                                                        
                                                                                                                
                                    ﮨﮩ
                                    ﰂ
                                                                        
                    और जो तैरते रहते हैं।
                                                                        
                                                                                                                
                                    ﮫﮬ
                                    ﰃ
                                                                        
                    फिर जो आगे निकल जाते हैं।
                                                                        
                                                                                                                
                                    ﮮﮯ
                                    ﰄ
                                                                        
                    फिर जो कार्य की व्यवस्था करते हैं।[1]
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1. (1-5) यहाँ से बताया गया है कि प्रलय का आरंभ भारी भूकम्प से होगा और दूसरे ही क्षण सब जीवित हो कर धरती के ऊपर होंगे।
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1. (1-5) यहाँ से बताया गया है कि प्रलय का आरंभ भारी भूकम्प से होगा और दूसरे ही क्षण सब जीवित हो कर धरती के ऊपर होंगे।
जिस दिन धरती काँपेगी।
                                                                        
                                                                                                                
                                    ﯖﯗ
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                    जिसके पीछे ही दूसरी कम्प आ जायेगी।
                                                                        उस दिन बहुत-से दिल धड़क रहे होंगे।
                                                                        
                                                                                                                
                                    ﯝﯞ
                                    ﰈ
                                                                        
                    उनकी आँखें झुकी होंगी।
                                                                        वे कहते हैं कि क्या हम फिर पहली स्थिति में लाये जायेंगे?
                                                                        जब हम (भुरभुरी) (खोखली) अस्थियाँ (हड्डियाँ) हो जायेंगे।
                                                                        उन्होंने कहाः तब तो इस वापसी में क्षति है।
                                                                        बस वह एक झिड़की होगी।
                                                                        तब वे अकस्मात धरती के ऊपर होंगे।
                                                                        (हे नबी!) क्या तुम्हें मूसा का समाचार पहुँचा?[1]
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1. (6-15) इन आयतों में प्रलय दिवस का चित्र पेश किया गया है। और काफ़िरों की अवस्था बताई गई है कि वे उस दिन किस प्रकार अपने आप को एक खुले मैदान में पायेंगे।
                                                                        ____________________
1. (6-15) इन आयतों में प्रलय दिवस का चित्र पेश किया गया है। और काफ़िरों की अवस्था बताई गई है कि वे उस दिन किस प्रकार अपने आप को एक खुले मैदान में पायेंगे।
जब पवित्र वादी 'तुवा' में उसे उसके पालनहार ने पुकारा।
                                                                        फ़िरऔन के पास जाओ, वह विद्रोही हो गया है।
                                                                        तथा उससे कहो कि क्या तुम पवित्र होना चाहोगे?
                                                                        और मैं तुम्हें तुम्हारे पालनहार की सीधी राह दिखाऊँ, तो तुम डरोगे?
                                                                        फिर उसे सबसे बड़ा चिन्ह (चमत्कार) दिखाया।
                                                                        
                                                                                                                
                                    ﭧﭨ
                                    ﰔ
                                                                        
                    तो उसने उसे झुठला दिया और बात न मानी।
                                                                        फिर प्रयास करने लगा।
                                                                        
                                                                                                                
                                    ﭮﭯ
                                    ﰖ
                                                                        
                    फिर लोगों को एकत्र किया, फिर पुकारा।
                                                                        और कहाः मैं तुम्हारा परम पालनहार हूँ।
                                                                        तो अल्लाह ने उसे संसार तथा परलोक की यातना में घेर लिया।
                                                                        वास्तव में, इसमें उसके लिए शिक्षा है, जो डरता है।
                                                                        क्या तुम्हें पैदा करना कठिन है अथवा आकाश को, जिसे उसने बनाया।[1]
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1. (16-27) यहाँ से प्रलय के होने और पुनः जीवित करने के तर्क आकाश तथा धरती की रचना से दिये जा रहे हैं कि जिस शक्ति ने यह सब बनाया और तुम्हारे जीवन रक्षा की व्यवस्था की है, प्रलय करना और फिर सब को जीवित करना उस के लिये असंभव कैसे हो सकता है? तुम स्वयं विचार कर के निर्णय करो।
                                                                        ____________________
1. (16-27) यहाँ से प्रलय के होने और पुनः जीवित करने के तर्क आकाश तथा धरती की रचना से दिये जा रहे हैं कि जिस शक्ति ने यह सब बनाया और तुम्हारे जीवन रक्षा की व्यवस्था की है, प्रलय करना और फिर सब को जीवित करना उस के लिये असंभव कैसे हो सकता है? तुम स्वयं विचार कर के निर्णय करो।
उसकी छत ऊँची की और चौरस किया।
                                                                        और उसकी रात को अंधेरी तथा दिन को उजाला किया।
                                                                        और इसके बाद धरती को फैलाया।
                                                                        और उससे पानी और चारा निकाला।
                                                                        
                                                                                                                
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                    और पर्वतों को गाड़ दिया।
                                                                        तुम्हारे तथा तुम्हारे पशुओं के लाभ के लिए।
                                                                        तो जब प्रलय आयेगी।[1]
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1. (28-34) 'बड़ी आपदा' प्रलय को कहा गया है जो उस की घोर स्थिति का चित्रण है।
                                                                        ____________________
1. (28-34) 'बड़ी आपदा' प्रलय को कहा गया है जो उस की घोर स्थिति का चित्रण है।
उस दिन इन्सान अपना करतूत याद करेगा।[1]
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1. (35) यह प्रलय का तीसरा चरण होगा जब कि वह सामने होगी। उस दिन प्रत्येक व्यक्ति को अपने संसारिक कर्म याद आयेंगे और कर्मानुसार जिस ने सत्य धर्म की शिक्षा का पालन किया होगा उसे स्वर्ग का सुख मिलेगा और जिस ने सत्य धर्म और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को नकारा और मनमानी धर्म और कर्म किया होगा वह नरक का स्थायी दुःख भोगेगा।
                                                                        ____________________
1. (35) यह प्रलय का तीसरा चरण होगा जब कि वह सामने होगी। उस दिन प्रत्येक व्यक्ति को अपने संसारिक कर्म याद आयेंगे और कर्मानुसार जिस ने सत्य धर्म की शिक्षा का पालन किया होगा उसे स्वर्ग का सुख मिलेगा और जिस ने सत्य धर्म और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को नकारा और मनमानी धर्म और कर्म किया होगा वह नरक का स्थायी दुःख भोगेगा।
और देखने वाले के लिए नरक सामने कर दी जायेगी।
                                                                        तो जिसने विद्रोह किया।
                                                                        और सांसारिक जीवन को प्राथमिक्ता दी।
                                                                        तो नरक ही उसका आवास होगी।
                                                                        परन्तु, जो अपने पालनहार की महानता से डरा तथा अपने आपको मनमानी करने से रोका।
                                                                        तो निश्चय ही उसका आवास स्वर्ग है।
                                                                        वे आपसे प्रश्न करते हैं कि वह समय कब आयेगा?[1]
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1. (42) काफ़िरों का यह प्रश्न समय जानने के लिये नहीं, बल्कि हंसी उड़ाने के लिये था।
                                                                        ____________________
1. (42) काफ़िरों का यह प्रश्न समय जानने के लिये नहीं, बल्कि हंसी उड़ाने के लिये था।
तुम उसकी चर्चा में क्यों पड़े हो?
                                                                        उसके होने के समय का ज्ञान तुम्हारे पालनहार के पास है।
                                                                        तुम तो उसे सावधान करने के लिए हो, जो उससे डरता है।[1]
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1. (45) इस आयत में कहा गया है कि (हे नबी!) सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम आप का दायित्व मात्र उस दिन से सावधान करना है। धर्म बलपूर्वक मनवाने के लिये नहीं। जो नहीं मानेगा उसे स्वयं उस दिन समझ में आ जायेगा कि उस ने क्षण भर के संसारिक जीवन के स्वार्थ के लिये अपना स्थायी सुख खो दिया। और उस समय पछतावे का कुछ लाभ नहीं होगा।
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1. (45) इस आयत में कहा गया है कि (हे नबी!) सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम आप का दायित्व मात्र उस दिन से सावधान करना है। धर्म बलपूर्वक मनवाने के लिये नहीं। जो नहीं मानेगा उसे स्वयं उस दिन समझ में आ जायेगा कि उस ने क्षण भर के संसारिक जीवन के स्वार्थ के लिये अपना स्थायी सुख खो दिया। और उस समय पछतावे का कुछ लाभ नहीं होगा।
वे जिस दिन उसका दर्शन करेंगे, उन्हें ऐसा लगेगा कि वे संसार में एक संध्या या उसके सवेरे से अधिक नहीं ठहरे।