surah.translation .
من تأليف: مولانا عزيز الحق العمري .

तुम्हें अधिक (धन) के लोभ ने मगन कर दिया।
यहाँ तक कि तुम क़ब्रिस्तान जा पहुँचे।[1]
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1. (1-2) इन दोनों आयतों में उन को सावधान किया गया है जो संसारिक धन ही को सब कुछ समझते हैं और उसे अधिकाधिक प्राप्त करने की धुन उन पर ऐसी सवार है कि मौत के पार क्या होगा इसे सोचते ही नहीं। कुछ तो धन की देवी बना कर उसे पूजते हैं।
निश्चय तुम्हें ज्ञान हो जायेगा।
फिर निश्चय ही तुम्हें ज्ञान हो जायेगा।
वास्तव में, यदि तुम्हें विश्वास होता (तो ऐसा न करते)।[1]
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1. (3-5) इन आयतों में सावधान किया गया है कि मौत के पार क्या है? उन्हें आँख बन्द करते ही इस का ज्ञान हो जायेगा। यदि आज तुम्हें इस का विश्वास होता तो अपने भविष्य की ओर से निश्चिन्त न होते। और तुम पर धन प्राप्ती की धुन इतनी सवार न होती।
तुम नरक को अवश्य देखोगे।
फिर उसे विश्वास की आँख से देखोगे।
फिर उस दिन तुमसे सुख सम्पदा के विषय में अवश्य पूछ गछ होगी।[1]
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1. (6-8) इन आयतों में सूचित किया गया है कि तुम नरक के होने का विश्वास करो या न करो वह दिन आ कर रहेगा जब तुम उस को अपनी आँखों से देख लोगे। उस समय तुम्हें इस का पूरा विश्वास हो जायेगा। परन्तु वह दिन कर्म का नहीं ह़िसाब देने का दिन होगा। और तुम्हें प्रत्येक अनुकम्पा (नेमत) के बारे में अल्लाह के सामने जवाब देही करनी होगी। (अह़्सनुल बयान)