surah.translation .
من تأليف: مولانا عزيز الحق العمري .

शपथ है दिन चढ़े की!
और शपथ है रात्रि की, जब उसका सन्नाटा छा जाये!
(हे नबी!) तेरे पालनहार ने तुझे न तो छोड़ा और ने ही विमुख हुआ।
और निश्चय ही आगामी युग तेरे लिए प्रथम युग से उत्तम है।
और तेरा पालनहार तुझे इतना देगा कि तू प्रसन्न हो जायेगा।
क्या उसने तुझे अनाथ पाकर शरण नहीं दी?
और तुझे पथ भूला हुआ पाया, तो सीधा मार्ग नहीं दिखाया?
और निर्धन पाया, तो धनी नहीं कर दिया?
तो तुम अनाथ पर क्रोध न करना।[1]
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1. (1-9) इन आयतों में अल्लाह ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से फ़रमाया है कि तुम्हें यह चिन्ता कैसे हो गई है कि हम अप्रसन्न हो गये? हम ने तो तुम्हारे जन्म के दिन से निरन्तर तुम पर उपकार किये हैं। तुम अनाथ थे तो तुम्हारे पालन और रक्षा की व्यवस्था की। राह से अंजान थे तो राह दिखाई। निर्धन थे तो धनी बना दिया। यह बातें बता रही हैं कि तुम आरम्भ ही से हमारे प्रियवर हो और तुम पर हमारा उपकार निरन्तर है।
और माँगने वाले को न झिड़कना।
और अपने पालनहार के उपकार का वर्णन करना।[1]
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1. (10-11) इन अन्तिम आयतों में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को बताया गया है कि हम ने तुम पर जो उपकार किये हैं उन के बदले में तुम अल्लाह की उत्पत्ति के साथ दया और उपकार करो यही हमारे उपकारों की कृतज्ञता होगी।