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1. (1-3) इन में संबोधित तो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को किया गया है, परन्तु आप के माध्यम से पूरे मुसलमानों के लिये संबोधन है। शरण माँगने के लिये तीन बातें ज़रूरी हैं: (1) शरण माँगाना। (2) जो शरण माँगता हो। (3) जिस के भय से शरण माँगी जाती हो और अपने को उस से बचाने के लिये दूसरे की सुरक्षा और शरण में जाना चाहता हो। फिर शरण वही माँगता है जो यह सोचता है कि वह स्वयं अपनी रक्षा नहीं कर सकता। और अपनी रक्षा के लिये वह ऐसे व्यक्ति या अस्तित्व की शरण लेता है जिस के बारे में उस का विश्वास होता है कि वह उस की रक्षा कर सकता है। अब स्वभाविक नियमानुसार इस संसार में सुरक्षा किसी वस्तु या व्यक्ति से प्राप्त की जाती है जैसे धूप से बचने के लिये पेड़ या भवन आदि की। परन्तु एक खतरा वह भी होता है जिस से रक्षा के लिये किसी अनदेखी शक्ति से शरण माँगी जाती है जो इस विश्व पर राज करती है। और वह उस की रक्षा अवश्य कर सकती है। यही दूसरे प्रकार की शरण है जो इन जो इन दोनों सूरतों में अभिप्रेत है। और क़ुर्आन में जहाँ भी अल्लाह की शरण लेने की चर्चा है उस का अर्थ यही विशेष प्रकार की शरण है। और यह तौह़ीद पर विश्वास का अंश है। ऐसे ही शरण के लिये विश्वासहीन देवी देवताओं इत्यादि को पुकारना शिर्क और घोर पापा है।
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1. (4-5) इन दोनों आयतों में जादू और डाह की बुराई से अल्लाह की शरण में आने की शिक्षा दी गई है। और डाह ऐसा रोग है जो किसी व्यक्ति को दूसरों को हानि पहुँचाने के लिये तैयार कर देता है। और आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर भी जादू डाह के कारण ही किया गया था। यहाँ ज्ञातव्य है कि इस्लाम ने जादू को अधर्म कहा है जिस से इन्सान के परलोक का विनाश हो जाता है।