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1. (1-5) इन में प्रलय के दिन आकाश ग्रहों तथा धरती और समाधियों पर जो दशा गुज़रेगी उस का चित्रण किया गया है। तथा चेतावनी दी गई है कि सब के कर्तूत उस के सामने आ जायेंगे।
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1. (6-8) भावार्थ यह है कि इन्सान की पैदाइश में अल्लाह की शक्ति, दक्ष्ता तथा दया के जो लक्षण हैं, उन के दर्पण में यह बताया गया है कि प्रलय को असंभव न समझो। यह सब व्यवस्था इस बात का प्रमाण है कि तुम्हारा अस्तित्व व्यर्थ नहीं है कि मनमानी करो। (देखियेः तर्जुमानुल क़ुर्आन, मौलाना अबुला कलाम आज़ाद) इस का अर्थ यह भी हो सकता है कि जब तुम्हारा अस्तित्व और रूप रेखा कुछ भी तुम्हारे बस नहीं, तो फिर जिस शक्ति ने सब किया उसी की शक्ति में प्रलय तथा प्रतिकार के होने को क्यों नहीं मानते?
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1. (9-12) इन आयतों में इस भ्रम का खण्डन किया गया है कि सभी कर्मों और कथनों का ज्ञान कैसे हो सकता है।
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1. (13-16) इन आयतों में सदाचारियों तथा दुराचारियों का परिणाम बताया गया है कि एक स्वर्ग के सुखों में रहेगा और दूसरा नरक के दण्ड का भागी बनेगा।
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1. (17-19) इन आयतों में दो वाक्यों में प्रलय की चर्चा दोहरा कर उस की भ्यानकता को दर्शाते हुये बताया गया है कि निर्णय बे लाग होगा। कोई किसी की सहायता नहीं कर सकेगा। सत्य आस्था और सत्कर्म ही सहायक होंगे जिस का मार्ग क़ुर्आन दिखा रहा है। क़ुर्आन की सभी आयतों में प्रतिकार का दिन प्रलय के दिन को ही बताया गया है जिस दिन प्रत्येक मनुष्य को अपने कर्मानुसार प्रतिकार मिलेगा।