ترجمة معاني سورة الحشر
باللغة الهندية من كتاب الترجمة الهندية
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من تأليف:
مولانا عزيز الحق العمري
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अल्लाह की पवित्रता का गान किया है उसने, जो भी आकाशों तथा धरती में है और वह प्रभुत्वशाली, गुणी है।
वही है, जिसने अह्ले किताब में से काफ़िरों को उनके घरों से पहले ही आक्रमण में निकाल दिया। तुमने नहीं समझा था कि वे निकल जायेंगे और उन्होंने समझा था कि रक्षक होंगे उनके दुर्ग[1] अल्लाह से। तो आ गया उनके पास अल्लाह (का निर्णय)। ऐसा उन्होंने सोचा भी न था तथा डाल दिया उनके दिलों में भय। वे उजाड़ रहे थे अपने घरों को अपने हाथों से तथा ईमान वालों के हाथों[2] से। तो शिक्षा लो, हे आँख वालो!
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1. नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) जब मदीना पहुँचे तो वहाँ यहूदियों के तीन क़बीले आबाद थेः बनी नज़ीर, बनी क़ुरैज़ा तथा बनी क़ैनुक़ाअ। आप ने उन सभी से संधि कर ली। परन्तु वह इस्लाम के विरुध्द षड्यंत्र रचते रहे। और एक समय जब आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) बनी नज़ीर के पास गये तो उन्होंने ऊपर से एक पत्थर फेंक कर आप को मार डालने की योजना बनाई। जिस से वह़्यी द्वारा अल्लाह ने आप को सूचित कर दिया। उन के इस संधि भंग तथा षड्यंत्र के कारण आप ने उन पर आक्रमण किया। वह कुछ दिन अपने दुर्गों में बंद रहे। अन्ततः उन्होंने प्राण क्षमा के रूप में देश निकाला को स्वीकार किया। और यह मदीना से यहूद का प्रथम देश निकाला था। यहाँ से वह ख़ैबर पहुँचे और आदरणीय उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) के युग में उन्हें फिर देश निकाला दिया गया। और वह वहाँ से शाम चले गये जो ह़श्र का मैदान होगा। 2. जब वे अपने घरों से जाने लगे तो घरों को तोड़-तोड़ कर जो कुछ साथ ले जा सकते थे ले गये। और शेष सामान मुसलमानों ने निकाला।
और यदि अल्लाह ने न लिख दिया होता उन (के भाग्य में) देश निकाला, तो उन्हें यातना दे देता संसार (ही) में तथा उनके लिए अख़िरत (परलोक) में नरक की यातना है।
ये इसलिए कि उन्होंने विरोध किया अल्लाह तथा उसके रसूल का और जो विरोध करेगा अल्लाह का, तो निश्चय अल्लाह कड़ी यातना देने वाला है।
(हे मुसलमानो!) तुमने नहीं काटा[1] कोई खजूर का वृक्ष और न छोड़ा उसे खड़ा अपने तने पर, परन्तु ये सब अल्लाह के आदेश से हुआ और ताकि वह अपमानित करे पथभ्रष्टों को।
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1. बनी नज़ीर के घेराव के समय नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के आदेशानुसार उन के खजूरों के कुछ वृक्ष जला दिये गये और काट दिये गये और कुछ छोड़ दिये गये। ताकि शत्रु की आड़ को समाप्त किया जाये। इस आयत में उसी का वर्णन किया गया है। (सह़ीह़ बुख़ारीः 4884)
और जो धन दिला दिया अल्लाह ने अपने रसूल को उनसे, तो नहीं दौड़ाये तुमने उसके लिए घोड़े और न ऊँट। परन्तु अल्लाह प्रभुत्व प्रदान कर देता है अपने रसूल को, जिसपर चाहता है तथा अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।
अल्लाह ने जो धन दिलाया है अपने रसूल को इस बस्ती वालों[1] से, वह अल्लाह, रसूल, (आपके) समीपवर्तियों, अनाथों, निर्धनों तथा यात्रियों के लिए है; ताकि वह (धन) फिरता न रह[2] जाये तुम्हारे धनवानों के बीच और जो प्रदान कर दे रसूल, तुम उसे ले लो और रोक दें तुम्हें जिससे, तुम उससे रुक जाओ तथा अल्लाह से डरते रहो, निश्चय अल्लाह कड़ी यातना देने वाला है।
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1. अर्थात यहूदी क़बीला बनी नज़ीर से जो धन बिना युध्द के प्राप्त हुआ उस का नियम बताया गया है कि वह पूरा धन इस्लामी बैतुल माल का होगा उसे मुजाहिदों में विभाजित नहीं किया जायेगा। ह़दीस में है कि यह नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के लिये विशेष था जिस से आप अपनी पत्नियों को ख़र्च देते थे। फिर जो बच जाता तो उसे अल्लाह की राह में शस्त्र और सवारी में लगा देते थे। (बुख़ारीः 4885) इस को फ़ेय का माल कहते हैं। जो ग़नीमत के माल से अलग है। 2. इस में इस्लाम की अर्थ व्यवस्था के मूल नियम का वर्णन किय गया है। पूँजी पति व्यवस्था में धन का प्रवाह सदा धनवानों की ओर होता है। और निर्धन दरिद्रता की चक्की में पिसता रहता है।कम्युनिज़्म में धन का प्रवाह सदा शासक वर्ग की ओर होता है। जब कि इस्लाम में धन का प्रवाह निर्धन वर्ग की ओर होता है।
उन निर्धन मुहाजिरों के लिए है, जो निकाल दिये गये अपने घरों तथा धनों से। वे चाहते हैं अल्लाह का अनुग्रह तथा प्रसन्नता और सहायता करते हैं अल्लाह तथा उसके रसूल की, यही सच्चे हैं।
तथा उन लोगों[1] के लिए (भी), जिन्होंने आवास बना लिया इस घर (मदीना) को तथा उन (मुहाजिरों के आने) से पहले ईमान लाये, वे प्रेम करते हैं उनसे, जो हिजरत करके आ गये उनके यहाँ और वे नहीं पाते अपने दिलों में कोई आवश्यक्ता उसकी, जो उन्हें दिया जाये और प्राथमिक्ता देते हैं दूसरों को अपने ऊपर, चाहे स्वयं भूखे[1] हों और जो बचा लिये गये अपने मन की तंगी से, तो वही सफल होने वाले हैं।
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1. इस से अभिप्राय मदीना के निवासी अन्सार हैं। जो मुहाजिरीन के मदीना में आने से पहले ईमान लाये थे। इस का यह अर्थ नहीं है कि वह मुहाजिरीन से पहले ईमान लाये थे। 2. ह़दीस में है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास एक अतिथि आया और कहाः हे अल्लाह के रसूल! मैं भूखा हूँ। आप ने अपनी पत्नियों के पास भेजा तो वहाँ कुछ नहीं था। एक अन्सारी उसे घर ले गये। घर पहुँचे तो पत्नि ने कहाः घर में केवल बच्चों का खाना है। उन्होंने परस्पर प्रामर्श किया कि बच्चों को बहला कर सुला दिया जाये। तथा पत्नी से कहा कि जब अतिथि खाने लगे तो तुम दीप बुझा देना। उस ने ऐसा ही किया। सब भूखे सो गये और अतिथि को खिला दिया। जब वह अन्सारी भोर में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास पहुँचे तो आप ने कहाः अमुक पुरुष (अबू तल्ह़ा) और अमुक स्त्री (उम्मे सुलैम) से अल्लाह प्रसन्न हो गया। और उस ने यह आयत उतारी है। (सह़ीह़ बुख़ारीः 4889)
और जो आये उनके पश्चात्, वे कहते हैं: हे हमारे पालनहार! हमें क्षमा कर दे तथा हमारे उन भाईयों को, जो हमसे पहले ईमान लाये और न रख हमारे दिलों में कोई बैर उनके लिए, जो ईमान लाये। हे हमारे पालनहार! तू अति करुणामय, दयावान् है।
क्या आपने उन्हें[1] नहीं देखा, जो मुनाफ़िक़ (अवसरवादी) हो गये और कहते हैं अपने अह्ले किताब भाईयों से कि यदि तुम्हें देश निकाला दिया गया, तो हम अवश्य निकल जायेंगे तुम्हारे साथ और नहीं मानेंगे तुम्हारे बारे में किसी की (बात) कभी और यदि तुमसे युध्द हुआ तो हम अवश्य तुम्हारी सहायता करेंगे तथा अल्लाह गवाह है कि वे झूठे हैं।
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1. इस से अभिप्राय अब्दुल्लाह बिन उबय्य मुनाफ़िक़ और उस के साथी हैं। जब नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने यहूद को उन के वचन भंग तथा षड्यंत्र के कारण दस दिन के भीतर निकल जाने की चेतावनी दी, तो उस ने उन से कहा कि तुम अड़ जाओ। मेरे बीस हज़ार शस्त्र युवक तुम्हारे साथ मिल कर युध्द करेंगे। और यदि तुम्हें निकाला गया तो हम भी तुम्हारे साथ निकल जायेंगे। परन्तु यह सब मौखिक बातें थीं।
यदि वे निकाले गये तो ये उनके साथ नहीं निकलेंगे और यदि उनसे युध्द हो, तो वे उनकी सहायता नहीं करेंगे और यदि उनकी सहायता की (भी,) तो अवश्य पीठ दिखा देंगे, फिर कहीं से कोई सहायता नहीं पायेंगे।
निश्चय अधिक भय है तुम्हारा उनके दिलों में अल्लाह (के भय) से। ये इसलिए कि वे समझ-बूझ नहीं रखते।
वे नहीं युध्द करेंगे तुमसे एकत्र होकर, परन्तु ये कि दुर्ग बंद बस्तियों में हों अथवा किसी दीवार की आड़ से। उनका युध्द आपस में बहुत कड़ा है। आप उन्हें एकत्र समझते हैं, जबकि उनके दिल अलग अलग हैं। ये इसलिए कि वे निर्बोध होते हैं।
उनके समान, जो उनसे कुछ ही पूर्व चख चुके[1] हैं अपने किये का स्वाद और इनके लिए दुःखदायी यातना है।
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1. इस में संकेत बद्र में मक्का के काफ़िरों तथा क़ैनुक़ाअ क़बीले की पराजय की ओर है।
(उनका उदाहरण) शैतान जैसा है कि वह कहता है मनुष्य से कि कुफ़्र कर, फिर जब वह काफ़िर हो गया, तो कह दिया कि मैं तुझसे विरक्त (अलग) हूँ। मैं तो डरता हूँ अल्लाह, सर्वलोक के पालनहार से।
तो हो गया उन दोनों का दुष्परिणाम ये कि वे दोनों नरक में सदावासी रहेंगे और यही है अत्याचारियों का कुफल।
हे लोगो जो ईमान लाये हो! अल्लाह से डरो और देखना चाहिये प्रत्येक को कि उसने क्या भेजा है कल के लिए तथा डरते रहो अल्लाह से, निश्चय अल्लाह सूचित है उससे, जो तुम करते हो।
और न हो जाओ उनके समान, जो भूल गये अल्लाह को, तो भुला दिया (अल्लाह ने) उन्हें अपने आपसे, यही अवज्ञाकारी हैं।
नहीं बराबर हो सकते नारकी तथा स्वर्गी। स्वार्गी ही वास्तव में सफल होने वाले हैं।
यदि हम अवतरित करते इस क़ुर्आन को किसी पर्वत पर, तो आप उसे देखते कि झुका जा रहा है तथा कण-कण होता जा रहा है, अल्लाह के भय से और इन उदाहरणों का वर्णन हम लोगों के लिए कर रहे हैं, ताकि वे सोच-विचार करें। वह खुले तथा छुपे का जानने वाला है। वही अत्यंत कृपाशील, दयावान् है।
वह अल्लाह ही है, जिसके अतिरिक्त कोई (सत्य) पूज्य नहीं है।
वह अल्लाह ही है, जिसके अतिरिक्त नहीं है[1] कोई सच्चा वंदनीय। वह सबका स्वामी, अत्यंत पवित्र, सर्वथा शान्ति प्रदान करने वाला, रक्षक, प्रभावशाली, शक्तिशाली बल पूर्वक आदेश लागू करने वाला, बड़ाई वाला है। पवित्र है अल्लाह उससे, जिसे वे (उसका) साझी बनाते हैं।
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1. इन आयतों में अल्लाह के शुभनामों और गुणों का वर्णन कर के बताया गया है कि वह अल्लाह कैसा है जिस ने यह क़ुर्आन उतारा है। इस आयत में अल्लाह के ग्यारह शुभनामों का वर्णन है। ह़दीस में है कि अल्लाह के निन्नानवे नाम हैं, जो उन्हें गिनेगा तो वह स्वर्ग में जायेगा। (सह़ीह़ बुख़ारीः 7392, सह़ीह़ मुस्लिमः 2677)
वही अल्लाह है, पैदा करने वाला, बनाने वाला, रूप देने वाला। उसी के लिए शुभ नाम हैं, उसकी पवित्रता का वर्णन करता है जो (भी) आकाशों तथा धरती में है और वह प्रभावशाली, ह़िक्मत वाला है।