ترجمة معاني سورة المدّثر
 باللغة الهندية من كتاب الترجمة الهندية
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                                    من تأليف: 
                                            مولانا عزيز الحق العمري
                                                            .
                                                
            
                                                                                                            ﰡ
                                                                                        
                    
                                                                                    हे चादर ओढ़ने[1] वाले! 
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1. नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर प्रथम वह़्यी के पश्चात् कुछ दिनों तक वह़्यी नहीं आई। फिर एक बार आप जा रहे थे कि आकाश से एक आवाज़ सुनी। ऊपर देखा तो वही फ़रिश्ता जो आप के पास 'ह़िरा' गुफ़ा में आया था आकाश तथा धरती के बीच एक कुर्सी पर विराजमान था। जिस से आप डर गये। और धरती पर गिर गये। फिर घर आये और अपनी पत्नी से कहाः मुझे चादर ओढ़ा दो, मुझे चादर ओढ़ा दो। उस ने चादर ओढ़ा दी। और अल्लाह ने यह सूरह उतारी। फिर निरन्तर वह़्यी आने लगी। (सह़ीह़ बुख़ारीः 4925, 4926, सह़ीह़ मुस्लिमः 161) प्रथम वह़्यी से आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को नबी बनाया गया। और अब आप पर धर्म के प्रचार का भार रख दिया गया। इन आयतों में आप के माध्यम से मुसलमानों को पवित्र रहने के निर्देश दिये गये हैं।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    खड़े हो जाओ, फिर सावधान करो।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    तथा अपने पालनहार की महिमा का वर्णन करो।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    तथा अपने कपड़ों को पवित्र रखो।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    तथा उपकार न करो इसलिए कि उसके द्वारा अधिक लो।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    और अपने पालनहार ही के लिए सहन करो।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    फिर जब फूँका जायेगा[1] नरसिंघा में।
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1. अर्थात प्रलय के दिन।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    तो उस दिन अति भीषण दिन होगा।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    आप छोड़ दें मुझे और उसे, जिसे मैंने पैदा किया अकेला।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    फिर दे दिया उसे अत्यधिक धन।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    और पुत्र उपस्थित रहने[1] वाले।
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1. जो उस की सेवा में उपस्थित रहते हैं। कहा गया है कि इस से अभिप्राय वलीद पुत्र मुग़ीरह है जिस के दस पुत्र थे।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    और दिया मैंने उसे प्रत्येक प्रकार का संसाधन।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    फिर भी वह लोभ रखता है कि उसे और अधिक दूँ।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    कदापि नहीं। वह हमारी आयतों का विरोधी है।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    मैं उसे चढ़ाऊँगा कड़ी[1] चढ़ाई।
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1. अर्थात कड़ी यातना दूँगा। (इब्ने कसीर)
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    उसने विचार किया और अनुमान लगाया।[1]
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1. क़ुर्आन के संबंध में प्रश्न किया गया तो वह सोचने लगा कि कौन सी बात बनाये, और उस के बारे में क्या कहे? (इब्ने कसीर)
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    वह मारा जाये! फिर उसने कैसा अनुमान लगाया?
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    फिर (उसपर अल्लाह की) मार! उसने कैसा अनुमान लगाया?
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    फिर माथे पर बल दिया और मुँह बिदोरा।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    फिर (सत्य से) पीछे फिरा और घमंड किया।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    और बोला कि ये तो पहले से चला आ रहा है, एक जादू है।[1]
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1. अर्थात मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने यह किसी से सीख लिया है। कहा जाता है कि वलीद पुत्र मुग़ीरह ने अबू जह्ल से कहा था कि लोगों में क़ुर्आन के जादू होने का प्रचार किया जाये।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    ये तो बस मनुष्य[1] का कथन है।
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1. अर्थात अल्लाह की वाणी नहीं है।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    मैं उसे शीघ्र ही नरक में झोंक दूँगा।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    और आप क्या जानें कि नरक क्या है।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    न शेष रखेगी और न छोड़ेगी।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    नियुक्त हैं उनपर उन्नीस (रक्षख फ़रिश्ते)।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    और हमने नरक के रक्षक फ़रिश्ते ही बनाये हैं और उनकी संख्या को काफ़िरों के लिए परीक्षा बना दिया गया है। ताकि विश्वास कर लें अह्ले[1] किताब और बढ़ें जो ईमान लाये हैं ईमान में और संदेह न करें जो पुस्तक दिये गये हैं और ईमान वाले और ताकि कहें वे जिनके दिलों में (द्विधा का) रोग है तथा काफ़िर[2] कि क्या तात्पर्य है अल्लाह का इस उदाहरण से? ऐसे ही कुपथ करता है अल्लाह जिसे चाहता है और संमार्ग दर्शाता है, जिसे चाहता है और नहीं जानता है आपके पालनहार की सेनाओं को उसके सिवा कोई और तथा नहीं है ये नरक की चर्चा, किन्तु मनुष्य की शिक्षा के लिए।
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1. क्योंकि यहूदियों तथा ईसाईयों की पुस्तकों में भी नरक के अधिकारियों की यही संख्या बताई गई है। 2. जब क़ुरैश ने नरक के अधिकारियों की चर्चा सुनी तो अबू जह्ल ने कहाः हे क़ुरैश के समूह! क्या तुम में से दस-दस लोग, एक-एक फ़रिश्ते के लिये काफ़ी नहीं हैं? और एक व्यक्ति ने जिसे अपने बल पर बड़ा गर्व था कहा कि 17 को मैं अक्ला देख लूँगा। और तुम सब मिल कर दो को देख लेना। (इब्ने कसीर)
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    ऐसी बात नहीं, शपथ है चाँद की!
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    तथा रात्रि की, जब व्यतीत होने लगे!
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    और प्रातः की, जब प्रकाशित हो जाये!
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    वास्तव में, (नरक) एक[1] बहुत बड़ी चीज़ है।
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1. अर्थात जैसे रात्री के पश्चात दिन होता है उसी प्रकार कर्मों का भी परिणाम सामने आना है। और दुष्कर्मों का परिणाम नरक है।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    उसके लिए तुममें से, जो चाहे[1] आगे होना अथवा पीछे रहना।
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1. अर्थात आज्ञा पालन द्वारा अग्रसर हो जाये, अथवा अवैज्ञा कर के पीछे रह जाये।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    प्रत्येक प्राणी अपने कर्मों के बदले में बंधक है।[1]
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1. यदि सत्कर्म किया तो मुक्त हो जायेगा।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    वे स्वर्गों में होंगे। वे प्रश्न करेंगे।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    तुम्हें क्या चीज़ ले गयी नरक में।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    वे कहेंगेः हम नहीं थे नमाज़ियों में से।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    और नहीं भोजन कराते थे निर्धन को।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    तथा कुरेद करते थे कुरेद करने वालों के साथ।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    और हम झुठलाया करते थे प्रतिफल के दिन (प्रलय) को।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    यहाँ तक कि हमारी मौत आ गई।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    तो उन्हें लाभ नहीं देगी शिफ़ारिशियों (अभिस्तावकों) की शिफ़ारिश।[1]
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1. अर्थात नबियों और फ़रिश्तों इत्यादि की। किन्तु जिस से अल्लाह प्रसन्न हो और उस के लिये सिफ़ारिश की अनुमति दे।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    तो उन्हें क्या हो गया है कि इस शिक्षा (क़ुर्आन) से मुँह फेर रहे हैं?
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    मानो वे (जंगली) गधे हैं, बिदकाये हुए।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    बल्कि चाहता है प्रत्येक व्यक्ति उनमें से कि उसे खुली[1] पुस्तक दी जाये।
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1. अर्थात वे चाहते हैं कि प्रत्येक के ऊपर वैसे ही पुस्तक उतारी जाये जैसे मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर उतारी गई है। तब वे ईमान लायेंगे। (इब्ने कसीर)
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    कदापि ये नहीं (हो सकता) बल्कि वे आख़िरत (परलोक) से नहीं डरते हैं।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    निश्चय ये (क़ुर्आन) तो एक शिक्षा है।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    अब जो चाहे, शिक्षा ग्रहण करे।
                                                                         
                                                                                                                                        
                    
                                                                                    और वे शिक्षा ग्रहण नहीं कर सकते, परन्तु ये कि अल्लाह चाह ले। वही योग्य है कि उससे डरा जाये और योग्य है कि क्षमा कर दे।